Tuesday, 22 December 2015

समर शेष है - रामधारी सिंह दिनकर

Ramdhari Singh 'Dinkar' (23 September 1908 – 24 April 1974) was an Indian Hindi poet, essayist, patriot and academic,[1][2] who is considered as one of the most important modern Hindi poets. He remerged as a poet of rebellion as a consequence of his nationalist poetry written in the days before Indian independence. His poetry exuded veer rasa, and he has been hailed as a Rashtrakavi ("National poet") on account of his inspiring patriotic compositions.[3] He was a regular poet of Hindi Kavi sammelan on those days and is hailed to be as popular and connected to poetry lovers for Hindi speakers as Pushkin for Russians.[4]
The present Prime Minister of India, Narendra Modi wrote a message appreciating the translation of Rashmirathi into English by the Mauritian cultural activist Leela Gujadhur Sarup.[5] As a mark of respect for him, his portrait was unveiled in the Central Hall of Parliament of India by the then Prime Minister of India, Dr. Manmohan Singh on his centenary year, 2008.[6][7] On 23 November 2012, the President of India, Pranab Mukherjee gave away Rashtrakavi Ramdhari Singh 'Dinkar' Sahitya Ratna Samman to 21 prominent writers and social workers at a function organised in Rashtrapati Bhavan.[8] On the occasion, the President recalled the contribution of Ramdhari Singh 'Dinkar' in the freedom struggle and his service to Hindi literature.[8] Poet and former Prime Minister of India, Atal Bihari Vajpayee spoke of Dinkarji in high esteem.[9] Others who have praised his literary genius include Shivraj Patil, Lal Krishna Advani, Somnath Chatterjee, Gulab Khandelwal, Bhawani Prasad Mishra, and Seth Govind Das.[10]
Dinkar initially supported the revolutionary movement during the Indian independence struggle, but later became a Gandhian. However, he used to call himself a 'Bad Gandhian' because he supported the feelings of indignation and revenge among the youth.[11] In Kurukshetra, he accepted that war is destructive but argued that it is necessary for the protection of freedom. He was close to prominent nationalists of the time such as Rajendra Prasad, Anugrah Narayan Sinha, Sri Krishna Sinha, Rambriksh Benipuri and Braj Kishore Prasad.
Dinkar was elected three times to the Rajya Sabha, and he was the member of this house from 3 April 1952 CE to 26 January 1964 CE,[11] and was awarded the Padma Bhushan in 1959.[11] He was also the Vice-Chancellor of Bhagalpur University (Bhagalpur, Bihar) in the early 1960s.
During The Emergency, Jayaprakash Narayan had attracted a gathering of one lakh people at the Ramlila grounds and recited Dinkar's famous poem: Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai (Devanagari: सिंहासन खाली करो कि जनता आती है; "Vacate the throne, for the people are coming").[12]


समर शेष है
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो
किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
कुंकुम? लेपूँ किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान।
फूलों की रंगीन लहर पर ओ उतराने वाले!
ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!
सकल देश में हालाहल है दिल्ली में हाला है,
दिल्ली में रौशनी शेष भारत में अंधियाला है।
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,
ज्यों का त्यों है खड़ा आज भी मरघट सा संसार।
वह संसार जहाँ पर पहुँची अब तक नहीं किरण है,
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर-वरण है।
देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्तस्तल हिलता है,
माँ को लज्जा वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।
पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात वर्ष हो गए राह में अटका कहाँ स्वराज?
अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग्य दबा रक्खे हैं किसने अपने कर में ?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी, बता किस घर में?
समर शेष है यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा,
और नहीं तो तुझ पर पापिनि! महावज्र टूटेगा।
समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा।
जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुँचाना होगा।
धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं,
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं,
कह दो उनसे झुके अगर तो जग में यश पाएँगे,
अड़े रहे तो ऐरावत पत्तों -से बह जाएँगे।
समर शेष है जनगंगा को खुल कर लहराने दो,
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो।
पथरीली, ऊँची ज़मीन है? तो उसको तोडेंग़े।
समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे।
समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर,
खंड-खंड हो गिरे विषमता की काली जंज़ीर।
समर शेष है, अभी मनुज-भक्षी हुँकार रहे हैं।
गाँधी का पी रुधिर, जवाहर पर फुंकार रहे हैं।
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है,
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है।
समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल
विचरें अभय देश में गांधी और जवाहर लाल।
तिमिरपुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्कांड रचें ना!
सावधान, हो खड़ी देश भर में गांधी की सेना।
बलि देकर भी बली! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे
मंदिर औ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे!
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

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